घायल-सा मधुमास है
घायल-सा मधुमास है
धरती से आकाश तक, मौसम है लाचार।
घायल-सा मधुमास है और मुदित पतझार।
प्रेम - भावना की नदी जबसे हुई विलुप्त ,
आँखों में सम्वेद की सूख गयी जलधार।
जिस घर में सब लोग हों जब अनुशासनहीन,
एक सूत्र में फिर कहाँ बँध सकता परिवार।
बदल गई है सभ्यता, बदले सारे ढंग,
सब अपने ही स्वार्थ का, करते कारोबार।
कल तक जिस इंसान पर था अटूट विश्वास,
चुपके से वह कर रहा, आज पीठ पर वार।
कहते कुछ हैं लोग अब, करते हैं कुछ और,
झूँठ कपट के आचरण का लेकर हथियार।
कर्मों से जितने अधम उतने हुए महान,
बाहर दिखती सादगी भीतर कुटिल विचार।
विद्वानों को आजकल, लोग रहे हैं भूल,
देते उनको मान जो हैं अनपढ़ मक्कार।
