STORYMIRROR

सतीश मापतपुरी

Abstract

4  

सतीश मापतपुरी

Abstract

घानाक्षरी

घानाक्षरी

1 min
221

आपको जो देख ले वो देखता ही रह जाए ,   

               लाखों और करोड़ों में चाँद सा ये रूप है 

आपको बनाने वाला आप ही हैरान सा है 

                 कौन सी घड़ी में बनी सूरत अनूप है 

सूरज भी शरमाये देख तेज चेहरे की 

                आप आयें छाँव में तो खिल जाती धूप है

फुरसत में आपको ही गढ़ा है विधाता ने ,

                  आपके तो सामने आ परी भी कुरूप है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract