STORYMIRROR

Vinit Kumar

Tragedy

3  

Vinit Kumar

Tragedy

गगन में स्याही

गगन में स्याही

1 min
159

देश में बहे खूं से

उस देश के झंडों को रंगा जाए

आज़ादी की आवाज जो बुलंद कर

हमें आज़ादी दिलाई

उनके छलनी देह को

उनके कटे सीस को

झंडे के बीचों-बीच रोपा जाए

काले अक्षर से

नीले गगन में बाबा के 

किताब को लिखा जाए

लिखा जाए अपमान को

लिखा जाए हत्यारों के नाम को

और यह भी लिखा जाए की

हत्यारे किस गद्दी पर विराजमान थे

किस गद्दी की इज्जत उछाल रहे थे

और यह भी लिखा जाए की

सड़कों पर किनकी लाशें पड़ी थी

किनकी अमीरी और किनकी फ़कीरी

की जनता ने बातें पढ़ी थी

पेड़ो पर किनकी लाशें थी

थाली में किनकी रक्त बही थी

किनकी लाशों पर बैठे

हम भोजन और जल पान किये थे

काले अक्षर से यह सब लिखा जाए

हर बात को दोहराया जाए।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy