मैं और कहानियां
मैं और कहानियां
हम उस रोज भी अजनबी थे
जब अपनी हाल - ए - दिल बयां किया करते थे
आवाजे चारों ओर होती थी
और हम तकलीफे सुनने को बेताब
हम इजहार करते थे की
मैं कहानियां नही
कहानियां हमे लिखती है
जिंदगी में भला जिंदगी से भी ऊपर कुछ होता है
जब कहानियां ही जिंदगी हो
और अकेलापन यूं
की दोस्ती और दूरी की फर्क भूल जाओ
और जहां अब तुम्हारा मुखौटा जमाना देखें
किसी को तुम अपने आंसू बताओ
दोस्त ही रहते हम
पर कहानियां मेरी खत्म हो गई
और तुम्हारी, तुम में गड़ी रही
मैं और कहानियों की ये अजीब रिश्ते
कोई पागल समझे तो कोई छूपके अपने किस्से
मैं दरिया और दरख़्त दोनो ही ढूंढू
मैं न्याय और जुर्म दोनो पर हंसू।

