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Prem Bajaj

Tragedy

1.4  

Prem Bajaj

Tragedy

गौरेया

गौरेया

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हर पेड़ पर चहकती थी गौरेया ,

मीठे गीत सुनाती थी गौरेया ,

बच्चों के मन को भाती थी गौरेया ।

फुदक - फुदक कर नाच दिखाती

लुका -छिपि का जैसे खेल हो खेलती । 

जाने कहां खो गई वो चिरईया ,

अब तो कहीं नज़र ना आती है ,

घरों में भी कहां रह गए झरोखे जहां जाकर वो डाले डेरा ।

 ना ही दिखती अब वो चिड़िया ,

ना चुं- चुं सुनाई देती है ।

नज़र लग ना जाने किस काले बिल्ले की,

दाना भी तो ना चुगने वो आती है । 

रहे ना अब वो मकान मिट्टी के ,

जिनमें वो घोंसला बनाया करती थी ‌,

देख के आंगन में शीशे को चोंच उससे लड़ाया करती थी ।

फुदकती थी , चहकती थी बच्चो संग खेला करती थी ।  

कच्चे मकान बन गए पक्के ,

पेड़ भी तो हमने काट डाले ,

ग़र फिर से ना पेड़ लगाए , 

चिरईया बोलो कहां फिर घोंसला बनाए । 

एक दिन ऐसा आएगा ,

पुछेंगे बच्चे कौन थी गौरेया ,

कैसी वो दिखा करती थी ,

कैसे समझाएंगे उनको ,

रह गई जो अब कहानी बन कर ,

वो सुन्दर प्यारी चिरईया हुआ करती थी ।

आओ मिल कर पेड़ लगाए ,

जिस पे गौरेया घोंसला बनाने,

प्यारी गौरैया को फिर से बुलाएं, 

संग- संग उसके हम चहचहाऐं ,

20 मार्च को सब गौरेया दिवस मनाएं ।


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