गौरेया
गौरेया


हर पेड़ पर चहकती थी गौरेया ,
मीठे गीत सुनाती थी गौरेया ,
बच्चों के मन को भाती थी गौरेया ।
फुदक - फुदक कर नाच दिखाती
लुका -छिपि का जैसे खेल हो खेलती ।
जाने कहां खो गई वो चिरईया ,
अब तो कहीं नज़र ना आती है ,
घरों में भी कहां रह गए झरोखे जहां जाकर वो डाले डेरा ।
ना ही दिखती अब वो चिड़िया ,
ना चुं- चुं सुनाई देती है ।
नज़र लग ना जाने किस काले बिल्ले की,
दाना भी तो ना चुगने वो आती है ।
रहे ना अब वो मकान मिट्टी के ,
जिनमें वो घोंसला बनाया करती थी ,
देख के आंगन में शीशे को चोंच उससे लड़ाया करती थी ।
फुदकती थी , चहकती थी बच्चो संग खेला करती थी ।
कच्चे मकान बन गए पक्के ,
पेड़ भी तो हमने काट डाले ,
ग़र फिर से ना पेड़ लगाए ,
चिरईया बोलो कहां फिर घोंसला बनाए ।
एक दिन ऐसा आएगा ,
पुछेंगे बच्चे कौन थी गौरेया ,
कैसी वो दिखा करती थी ,
कैसे समझाएंगे उनको ,
रह गई जो अब कहानी बन कर ,
वो सुन्दर प्यारी चिरईया हुआ करती थी ।
आओ मिल कर पेड़ लगाए ,
जिस पे गौरेया घोंसला बनाने,
प्यारी गौरैया को फिर से बुलाएं,
संग- संग उसके हम चहचहाऐं ,
20 मार्च को सब गौरेया दिवस मनाएं ।