STORYMIRROR

Prashant Tribhuwan

Romance

2  

Prashant Tribhuwan

Romance

गार

गार

1 min
125

नफ़रत सी होती है मुझे

उन हवाओं के लहरों से

जो बेवजह छू जाती है

तेरे इन गालों के गारो से


प्यार भी तो होता है उनसे

जब बालों को उछालती है

सवारते हुए उन्हें चेहरे से

तेरे चेहरे की गार खिलती है


तेरे गालों के इन गारो में

डूब जाने को जी करता है

कहीं छोड़ ना दे तू साथ मेरा

इस बात से हर पल डरता है


जब भी तू देखती है मुस्कुरा के

क़यामत से ढाती है मुझ पे

देख तेरे चेहरे की हसीन गार

दिल आ जाता है फिर से तुझ पे


पता है तू जाएगी मुझे छोड़ के

लेकिन प्यार कभी कम ना हो पाएगा

जब तक जिंदा हूं मैं इस जहां में

तेरे इन गारो में आँसू ना छाएगा



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance