गाँव
गाँव


तमाम रात क्या खूब नहाया है।
ओलों ने पत्तों का रंग चुराया है।
कश्ती बन बैठा है अब।
पानी में डूबता-तैरता शहर।
टहनियाँ बिखर गई इस कदर।
पेड़ों का अस्तित्व डगमगाया है।
अब लें हम कौन-सी डगर।
छूटते नहीं अगर-मगर।
विकास ला रहा तबाही का कहर।
पर्यावरण में प्रदूषण का जहर।
पगडंडियों पर है तानाशाही का असर।
गांव का रुख सख्त बेअसर।
खुशियों को पीठ दिखा रहा नगर।
बच्चों-बच्चों ने बहाई गवाही की लहर।
गांव ही है हम सबकी डगर।
आवाजाही हवाओं की,
हुए इरादें प्रबल।
पलायन की बातें अब रही संभल।
सौंधी खुशबू सबकी पहल।