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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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गाँव

गाँव

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तमाम रात क्या खूब नहाया है।


 ओलों ने पत्तों का रंग चुराया है।


 कश्ती बन बैठा है अब।


 पानी में डूबता-तैरता शहर। 

 

 टहनियाँ बिखर गई इस कदर।


 पेड़ों का अस्तित्व डगमगाया है।


 अब लें हम कौन-सी डगर।


 छूटते नहीं अगर-मगर।


विकास ला रहा तबाही का कहर।

 पर्यावरण में प्रदूषण का जहर। 


पगडंडियों पर है तानाशाही का असर।

 गांव का रुख सख्त बेअसर।


 खुशियों को पीठ दिखा रहा नगर। 

बच्चों-बच्चों ने बहाई गवाही की लहर।

 गांव ही है हम सबकी डगर। 


आवाजाही हवाओं की,

 हुए इरादें प्रबल।

 पलायन की बातें अब रही संभल।

 सौंधी खुशबू सबकी पहल।


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