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गाँव शहर और अमीरी

गाँव शहर और अमीरी

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तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,

और तू मेरे गाँव को गँवार कहता है।


ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है,

तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है।


थक गया है हर शख़्स काम करते करते,

तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।


गाँव चलो, वक्त ही वक्त है सबके पास,

तेरी सारी फ़ुरसत तेरा इतवार कहता है।


मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,

तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।


जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,

तू उन माँ-बाप को अब भार कहता है।


वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,

तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।


बड़े-बड़े मसले हल करती थीं पंचायतें,

तू अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।


बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाड़ी में,

पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है।


अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,

तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।।


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