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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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फ़िझुल लोग

फ़िझुल लोग

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फ़िजूल लोगों से बात करना

अपने समय को बर्बाद करना

आपका बार-बार समझाना

उनका बिल्कुल नहीं समझना


फ़िजुल लोगों को समझाना,

भैंस के आगे बींद बजाना

वो होते चिकने घड़े जैसे हैं

ज्ञान-बूंदें उन पे ठहरे कैसे है


फिजुल लोगों से बात करना

दीवार पे सर को अपने मारना 

कुछ फ़िजूल लोग होते ऐसे हैं

जिंदगी में होते दीमक जैसे हैं


वो खुद दुःखी,हमे दुःखी करते,

फिजुल लोग होते कैसे-कैसे है

फिजुल लोगो से बात करना,

अपने ही मुँह पे धूल फेंकना है


वो इंसान नहीं जानवर जैसे हैं

जो इंसानियत के तोड़ते रेशे हैं

फिजुल लोगों से दूरी अच्छी है

नहीं उजड़ती फिर कोई बस्ती है


फिजुल से कभी बात मत करना

नहीं तो आंखों से बरसेगा झरना

फिजुल लोग होते अक्स ऐसे है

जिनसे धूमिल रहते सभी शीशे है।


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