फ़ीनिक्स
फ़ीनिक्स
माँ कहा करती थी
गिद्ध हमेशा लाशों को नोचते है
माँ शायद आधा सच कहा करती थी
या वो पूरे सच को कह नहीं पाती थी
शायद वह अनदेखा करती थी
उस आधे सच को
उन वहशी लोगों की दरिंदगी को
जो औरत के शरीर को नोचते है
और उसके खूबसूरत शरीर को
एक जिंदा लाश में तब्दील कर देते है
सिसकती है उसकी रूह जिसमे
लेकिन अब जमाना बदल गया है
आज औरतें तो 'और'तें होती है
अब झटक देती है 'वह' सब
पीछे छोड़ देती है 'वर्जिनिटी'
वाली सारी वे फालतू बातें
जो फ़क़त बनायी गयी है
एक तरफा सिर्फ़ उसके लिए
अब वह फीनिक्स पक्षी की
मानिंद उठ खड़ी हो जाती है
एक आज़ाद सोच के साथ
हौसलों के पंखों से उड़ान भरती
ऊँचे आसमाँ में दूर कहीं
टूट कर बिखरे ख्वाबों को पूरा करने ...
