एलियन-मानव संवाद(२३ नवंबर)
एलियन-मानव संवाद(२३ नवंबर)
ज्यों ही मोबाइल लिया, आई उसकी टोक।
देखा तो वह एलियन, मुझे रहा था रोक।। १
यह डब्बा निर्जीव है, जिससे करते बात।
सब बैठे हो चुप लगा, आए ये हालात।।२
अस्त-व्यस्त घर है पड़ा, कहते हो, हैं व्यस्त।
तेरे इस व्यवहार से , सब लगते हैं त्रस्त।।३
पहले की यह बात है, होगा सन् वह साठ।
मैं आया उस वक्त भी, देखा पूजा पाठ।।४
घर में हँसी- ठिठोलियाँ, करते थे सब लोग।
उनके तन-मन स्वास्थ्य को, नहीं लगे थे रोग।।५
रिश्ते भी संयुक्त थे, रहे न कोई द्वेष।
सोच सभी की थी सरल, दोहरे न थे भेष।।६
मानव…..
मनु बोला सुन एलियन, है तो यही विकास।
नयी कथा हर काल की , देती नई सुवास।।७
तू मंगल से आ रहा, तुझे नहीं अभ्यास।
क्योंकर खोदे तू कुआँ, जहाँ न लगती प्यास।।८
तू क्या जाने क्यों धुँआ, चूल्हे के है पास।
तेरा तो कैपस्यूल से, मिटे भूख आभास।।९
हर धंधे का भूख से, रहे बड़ा संबंध।
देखो तितली फूल से, बना रही अनुबंध।।१०
मोबाइल तो एक पर, मुट्ठी में संसार।
स्पर्शहीन व्यापार से, कोरोना की हार।।११
मेरे भाई एलियन, तुम आना हर बार।
हम दोनों का यह मिलन, जग का सुन्दर सार।।१२