एक वृक्ष की पीड़ा
एक वृक्ष की पीड़ा
पेड़, पर्णी, गाछ, दरख़्त,
तरु, पादप, विटप, पुष्पद।
मेरे कई एक हैं नाम,
मैं हूँ एक वृक्ष अभिराम।
लंबा बड़ा है मेरा इतिहास,
बताने की हो रही अभिलाषा।
शायद तुम समझो मेरी पीड़ा,
यही रखता हूँ मन में आशा।
बोया था किसी ने बीज जमीं में,
उसी से बना हूं पेड़ आज मैं।
बरसों की जद्दोजहद के बाद,
जमीं पर खड़ा हूँ पेड़ बन मैं।
तना बन गया, डालें हो गई,
फूल लगे और फल भी उग आए।
था नन्हा सा एक बीज कभी मैं,
डालों में घोंसले बना पंछी रहने को आए।
पंछियों का वह मधुर कलरव सुन,
मिलता था मुझे आनंद बड़ा मधुर।
चिड़ियां जब लेती उड़ान, फैलाए अपने पंख,
राह देखता कब आयेगी, हो कर के आतुर।
महीना जब आता सावन का,
बच्चे टांगते झूला डाल में मेरी।
झूलते रहते दिन भर, मनाते मस्ती,
थककर टिकाते पीठ फिर छाँव में मेरी।
एक दिन आया एक लकड़हारा,
चलाने को मुझपर तेज कुल्हाड़ी।
नहीं समझ पाया मैं उसके मंसूबे,
था मैं भोला, बड़ा ही अनाड़ी।
चला दी उसने मुझपर कुल्हाड़ी,
कर दिया मुझ मूढ़ को लहूलुहान।
उजाड़ दिए पंछियों के घोंसले,
किया मेरा बड़ा बुरा ही अंजाम।
छिन्न भिन्न किया निर्दयी ने तन बदन,
टुकड़ों टुकड़ों में मुझे बांट दिया।
गिरा रहा मैं औंधे मुंह जमीं पर,
पल में ही मुझे मटियामेट किया।
कितने ही बरस तक फल दिए,
भूख मिटाई हर राहगीर की।
वर्षों के त्याग का मिला यह सिला,
अंतिम यात्रा कराई मेरी तकदीर की।
न दे सकूँ छाँव किसी पथिक को,
न दे सकूँ किसी पंछी को आसरा।
न लगेंगे अब कोई फल मुझमें,
न दे सकूँ अब भूखे को सहारा।
ऐसी ही मेरे जीवन की विडंबना,
ऐसा ही मेरे जीवन का मोल।
बँटा पड़ा मैं टुकड़ों में जमीं पर,
बिकता गया मैं किलो के मोल।
अगर मैं न रहूँ तो होगा सर्वनाश,
धरती से जीवन हो जायेगा बर्बाद।
अगर न रहे पेड़ ही धरती पर तो,
प्राणी कोई न रह सकेगा आबाद।
कहता हूँ आज मैं अपनी व्यथा,
क्यूँ कोई नहीं सुने आज मेरी बात।
जब तक हूँ मैं, तब तक है वसुंधरा,
मत काटो मुझे, दो तुम मेरा साथ।
विनती करता यह वृक्ष सभी से,
न बिगाड़ो तुम प्रकृति का संतुलन।
पर्यावरण को बचाना है हर हाल में,
मुखरित करो आज यह आंदोलन।
