एक तरफा प्यार
एक तरफा प्यार
एक रस था जिन्दगी में मीठा मीठा तुम्हारे अहसास का
तुम्हे वह भी ना गवार गुजरा
मैं तो हमेशा से ही जानता था की तुम मेरे नहीं हो
पर मैं तुम्हारा हूँ भला इससे तुम्हे क्यों ऐतराज था
तुम्हे याद करना तुम्हे सोचना
तुम रहो जब सामने तो बस तुम्हें ही देखना
कभी तुम बात करो मुझसे किसी काम के सिलसिले में
तो उस वक़्त मेरी खुशी का ठिकाना न होना
मैंने तुमसे कभी कुछ चाहा तो नहीं
न कभी कुछ माँगा तुमसे
जो इत्तेफाकन मिला बस उसी पर मेरा दिल निसार था
तुमने तो अब वह भी छीन लिया
मुझसे जिस पर बस मेरा अधिकार था ।

