एक सोच .....कोरोना
एक सोच .....कोरोना


एक डर ..........का
संपूर्ण विश्व पर
मानवीय दिमागों पर हावी होना।।
जिस का नाम है.......कोरोना
सोचता हूँ.......?
एक सभ्यता
एक समाज को ,
हर दिमाग की सोच को ,
जब रोकना हो ....!
आगे बढ़ने से ......?
तब अफवाह
और आधे सच से ,
जब लोग रू-ब-रू हो जाते हैं ।
तब कोरोना...... नहीं मारेगा ।
हम अपने डर से ही मर जाते हैं।
तरक्कीयों -उच्चाईयों को ,
बढ़ते हुए कदमों को ,
एक बीमार,
डरी सोच मार जाती है ।
कोरोना से तो ,
बच सकता था .........विश्व
लेकिन मौत के डर से ,
जिंदगी बे -मौत मारी जाती है।
कोरोना का रोना ,
हर सोच को ,
डराकर हावी हुई जाती है ।
जिंदगी इंसानी दौड़ की पहुंच,
क्यों .......समझ नहीं पाती है?
अपने डर से ,
जब तक नहीं लड़ेंगे ।
जब तक विश्व के ,
पर्यावरण की,
सुध हम ही नहीं करेंगे ।
संपूर्ण विश्व के लिए ,
सबके .......
जीने की जिद नही करेंगे।
कोरोना........... क्या करेगा ?
मानव सभ्यता ,
डर से मुक्त हो ,
सदियों तक रहेगा।