एक शाम हो
एक शाम हो


एक शाम हो,
जब थोड़ा आराम हो,
न चिंता फ़िक्र कल की में,
दिल दिमाग में घमासान हो,
काश एक ऐसी शाम हो,
जब थोड़ा सुकून,
थोड़ा आराम हो
जब खुद को माफ़ कर ही दिया हो,
जब खुद को सुनाई खुद की सज़ा खत्म हो
और पुरानी बातों पर उलझना कम हो,
जब एक दौड़ से निकाल
खुद को दूसरी में फेंकना ना हो,
);">जब खुद की ज़िंदगी से थक
किसी और की देखना ना हो,
जब झूठ का पर्दा गिरने पर भी
मेरी शख्सियत खूबसूरत लगे,
जब दिखा सकूं मैं सबको की
पंख मेरे भी हैं थके,
एक शाम हो जब मैं
अपना इंसानी चोगा पहनकर,
सबको मेरा भगवान ना होना दिखा सकूं,
जब मैं भी रोकर किसको
अपने गले लगा सकूं,
एक शाम हो,
काश एक ऐसी शाम हो।