Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

SURYAKANT MAJALKAR

Tragedy

2  

SURYAKANT MAJALKAR

Tragedy

एक रूह अजनबी

एक रूह अजनबी

1 min
290


एक रूह अजनबी शमशान में

भटकती रही रात भर

कभी कबर पर कभी उस कबर पर

रोती रही रात भर


कहीं से अंदर से आवाज़ नहीं आयी

कितनी बार उसने दास्ताँ सुनाई

फिर भी किसी की रूह ना जवाबी

भला क्या थी उसमें ख़राबी 


सुनाऊ उसके जीवन की कहानी 

कहलाती थी वो हुस्न की रानी

कितने दिलों को उसने तोड़ा

कितनों तो बीन पानी निचोड़ा


कइयों ने जीतेजी प्राण गवाएं

कुछ अपना दर्द दिल में छुपाये

कुछ जुबां पर अंकुश न लगाये

कुछ जान लेने पर उतर आये


फिर भी उसे फर्क नहीं पड़ता

कोई रोता, कोई मर जाता

उसके द्वार फिर आया न कोई

ढली उम्र, ढल गयी जवानी


कोसते अपने अहंकार को

सच्चे- झूठे प्यार को

हर शख्स याद आने लगा

ख़्वाब में चेहरा सताने लगा


रातों की नींद उड़ गयी

दिन का चैन खोने लगा

पानी न पूछता उसे कोई

अब वह खूब पछताई


दोष कर्मोसहित जान गंवाई

ढलते जीवन के बाद भी पछताई 

अब भी रूह भटकी रहती है

देखो कौन से युग में मोक्ष पाती है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy