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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

एक रात और जीने मुझे

एक रात और जीने मुझे

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इश्क में जो जहर पीने को मजबूर कर दे,

जिंदगी में सदा को उसे दिल से दूर कर दे।

हां अब जलता हूं आग से ज्यादा,

गम ए तन्हाईयों से प्यार है ज्यादा।

मोहब्बत में दर्द मिला खुशी देकर,

उल्फतों से क्या गिला गम लेकर।

जख्म दिये प्यार में जिसने,

दिल उसी को याद करता है,

अश्क दिये निसार में जिसने,

दिल उसी को प्यार करता है।

जिसकी मांग खून से सजाई,

वही दिल के खून से नहाई।

मालूम है उसके बगैर अब जी नहीं पाऊंगा,

तन्हा जिंदगी का दर्द समझने कौन आयेगा।

सारी उम्र जिसे संग रहना था,

हर कदम जिसे साथ चलना था,

सारी उम्र न समझ पाया कभी,

उसे ऐसे हालात पर छोड़ना था।

सारी उम्र कहूंगा दिल का हाल बुरा है,

बेवफा प्यार में जबसे तेरा साथ छुटा है।

प्यार में जुदा होकर जीना मुश्किल होता है,

जिन्हें प्यार सौदा उन्हें क्या फर्क पड़ता है।

जुदा होकर उसे नींद आ जाती होगी,

जिसकी रात बाहों में गुजर जाती होगी।

यह प्यार नहीं धोखा है,

जिसने चाहा उसे लूटा है।

ऐसा नहीं कि उसे याद न आती होगी,

मेरी वफा को याद कर बहुत रोती होगी। 

उसे दिल दिया उसने खिलौना समझ लिया,

उसे प्यार किया उसने बिछौना समझ लिया।

मेरा दिल वही लिखता है,

प्यार में जो एहसास होता है।

टूटकर ही बिखरा हूं,

अभी सांस बाकी है,

एक रात और जीने दे मुझे, 

सीने में तेरी याद बाकी है।


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