एक पत्ता टूटकर
एक पत्ता टूटकर
पेड़ से
एक पत्ता टूटकर
जमीन पर गिरता है
हवाओं में
धीरे धीरे फिर
तेजी से उड़ जाता है
आंखों से ओझल हो
जाता है
मिट्टी में ही कहीं
दब जाता है
या सबसे बिछड़कर
दूर कहीं
किसी देश में
उड़कर चला जाता है
मेरी आत्मा को तृप्ति तब
मिलती है जब
उसके स्थान पर
कोई दूसरा नया पत्ता
अंगड़ाई लेता हुआ
मुस्कुराता हुआ
अपनी नन्हीं नन्हीं आंखें
खोलता हुआ
जीवन की क ख ग भी
न जानता हुआ
जीवन चक्र में
प्रवेश पा जाता है
जीवन के अंत में न
सही
जीवन के प्रारम्भ में
मध्य में
सा रे गा मा पा धा नि सां
सरगम की धुन तो
हवा के झोंकों के संग
थिरकता हुआ
हिलता ढुलता
नाचता गाता और
शबनम की बूंदों को
आंचल में समेटे
लहराता ही जाता है।