एक ख्याल
एक ख्याल
अल्फ़ाज़ न हो तो
जज़्बात अधूरे हैं
जज़्बात न हो तो
अल्फ़ाज़ अधूरे हैं।
और जब कभी
अल्फाज और जज्बात
एक साथ मिल जायें
तो फिर ख्यालों की दुनिया
जगमगा उठती है।
और कलम
खुद-ब-खुद
आसमान में पंख फैला कर
उड़ने लगती है !
गर्म हवाओं में झुलसते हुए
आ जाता है तू सामने
एक ख्याल बनकर
कलम ढूंढने लगती है तब
गहन स्याही के रंग
बेनूर सी तपती है।
तेरे बिरहा में मेरी कलम
बार-बार बेरंग होकर !
संध्या के झीने आलोक में
मद्दिम हवा के झोंकों संग
बुझने को लालायित मोमबत्ती की लाट
पल-पल प्रज्ज्वलित हो उठती है।
तेरे ख्यालों की आमद से
और फिर कलम लिख देती है
वो पल वो यादें
जो कभी ना तेरी थी
और ना कभी मेरी !