एक गृह स्वामिनी
एक गृह स्वामिनी
भोर में उठती बाद में सोती, गृहिणी उफ़्फ़ ना करती है
सबकी होती छुट्टी एक दिन, पर वो कभी ना करती है।।
खुद के बारे खबर ना उसको, जो चिंता सबकी करती है
निस्वार्थ हो प्रेमभाव संग, सेवा सबकी करती है।।
काम खत्म ना उसका होता, सुबह से शाम भी ढलती है
कोई ना उसका हाल पूछता, जो दिन-रात मेहनत करती है।।
छोटे से बड़े हर काम करती, कभी आराम ना करती है
घर वाले तो थक भी जाते, गृहिणी कभी ना थकती है।।
कहने को कुछ काम ना करती, घर में ही तो रहती है
छोटे बड़े वो सबकी सुनती, चूँ तक भी ना करती है।।
मान, सम्मान और हक की लड़ाई में, सदा वो पीछे रहती है
त्याग, बलिदान वो करती हमेशा, परिवार की खातिर मरती है।।