एक दुनिया खिली खिली सी
एक दुनिया खिली खिली सी
ये अच्छा है तुम बाहर से या,
अंदर से कुछ और नहीं।
ये अच्छा है कि तुम्हें समझना,
सरल बड़ा कोई ज़ोर नहीं।
ये अच्छा है तुम ना बदले,
चंदा की चंद्र कलाओं से।
ये अच्छा है तुम खुली किताब,
स्थिर सी दीपशिखाओं से।
वरना तो इस जग में सबके,
कई मुखौटे होते हैं।
जिन्हें समझते सच्चाई हम,
झूठ पुलिंदा होते हैं।
वरना तो इस जग में,
बोली बातों का भी मोल नहीं।
शब्द भी बोले बिन तोले,
कोई नीति नहीं कोई तोल नहीं।
ये अच्छा है तुम बातों को,
होठों पर ना ला पाते हो।
और आंखों ही आंखों में,
मन की बातें सब बतियाते हो।
ये अच्छा है तुमने ना जाना,
झूठ जहाँ का कैसा है।
हर रिश्ते की सीमा में,
सबसे ऊपर है जो पैसा है।
ये अच्छा है तुम घोर,
दिखावे की दुनिया से दूर रहे।
ना बोला कुछ सुना भी कुछ ना,
याद रखा क्या भूल गए।
ये अच्छा है तुम भाग - दौड़ के,
इस जीवन का भाग नहीं।
एक दूजे को देख के तुममें,
कोई जलन की आग नहीं।
ये अच्छा है तुमने दुनिया की,
छवि एक अलग बनायी है।
बस प्यार के रिश्ते इसमें,
काली ना कोई कमाई है।
वरना तो इस जग में,
धन से मानव तोला जाता है।
हर रिश्ता प्रेम पुनीत जगत् में,
स्वार्थ बलि चढ़ जाता है।
वरना तो अंधे होकर सब,
भाग रहे इस दौड़ में।
समय कहाँ है पास किसी के,
दुनिया की इस होड़ में।
पास तुम्हारे आकर मैं,
एक ठहराव पा जाती हूँ।
भाग रही थी मैं भी जग में,
देख तुम्हें रुक जाती हूँ।
ये अच्छा है कि इस जीवन में,
मैंने तुमको जाना है।
सच कहूं ये जीवन क्या है,
ये तब ही पहचाना है।
भगवान करे दुनिया भी तुमसे,
प्यार की सरगम सीख सके।
निर्मलता निश्छलता का ये,
अद्भुत संगम सीख सके।
सीख सके ये मानव तुमसे,
दुनिया कैसी हो सकती है।
जो मन में निर्मलता हो,
दुनिया सुंदर हो सकती है।