एक दोस्त !
एक दोस्त !
वो हस्ते हस्ते मिलता है
गले लगने को लगता नहीं ,
सोचूं, शिकायत करूंगा आज उससे
तब वो मुझे छोड़ता नहीं ;
दोस्ती के वादे क्या किए!
अब वो दोस्त बनता नहीं ,
मैं समझ तो रहा हूं चुप रहकर
और वो है की मुझे समझता नहीं ;
उसने रखा है मुझे दुश्मनो में
मैं भी उससे बहोत दूर रहता नहीं ,
आकर लगेगा गले मेरे वो
मैं भी इतनी दुश्मनी रखता नहीं ;
दुआ है की उसे मुझसे भी कोई आदत लगे
और फिर मैं छोड़कर भी उसे छोड़ूंगा नहीं ,
दुआ है की मजबूरी में कोई काम न लगे सिर्फ मैं ही लगू
जब वो आएगा तब उसे तोड़कर भी तोड़ुगा नहीं ;
उसे भी हो जाए मोहब्बत शायरी से मेरी
फिर वो उठकर शाम में घर को जाएगा नहीं ,
हो जाएगी शाम और उड़ जाएंगे परिंदे
मेरी शायरी में गुम अब वो मुझे चांद बतायेगा नहीं;