एक डाली........
एक डाली........
मैं एक डाली से
उपमा करूं अगर खुद की
तो पेड़ होने का कभी
दंभ मुझमें नहीं आएगा।
पिता की छांव और
मां का दुलार याद रहेगा
जड़ों से जुड़कर मुझमें
अभिमान नहीं आएगा।
एक फलदार वृक्ष की
छत्रछाया में फलता हुआ
नए संसार में प्रविष्ट पर भी
गुमान नहीं आएगा।
मैं भी एक डाली हूं तो
फल भी लगेंगे मुझ पर
पिता की जड़ें बनेगी सहारा ,
भार मुझ पर नहीं आएगा।
मेरा वंश बढ़ेगा
उसी छांव में जिस से जुड़ा हुआ हूं
मात पिता की निर्मल छांव ,
आहा ! स्नेह का अभाव कभी नहीं आएगा ।
पेड़ से टूट डाली का क्या वजूद रह जाएगा।