एक चोर की तरह पिटता सच
एक चोर की तरह पिटता सच
अगर
झूठ की गाड़ी
सरपट दौड़े तो
फिर झूठ बोलने में
बुराई क्या है
सच को अपने
पहियों तले रौंदे तो
सच बोलने में
भलाई क्या है
झूठ का आवरण
ओढ़
बनी रानी महारानी
सच उसकी बनकर
दासी
कमर तोड़े
भरे शर्म से पानी
सच को साबित
करने का
कोई दर्पण अब
बाजार में न मिले
सच मांगे
कटोरा लेकर भीख
उसकी फरियाद सुनने वाला
न उसे भिक्षा देने वाला
कोई मिले
रिश्तों के कांच
चकनाचूर हुए
धज्जियां उड़ गई
कतरा कतरा
बदनाम हुए
एक चोर की तरह
पिटता सच
पकड़ में कहीं न आ
जाये
अंधेरे में छिपता
फिरता सच
झूठ की दसों अंगुलियां
घी में
मलाई चाट चाटकर
खा रहा
एक कोने में
भूखा प्यासा
एक तरसती आंख और
एक कौर सूखी रोटी के लिए भी
छटपटा रहा।