एक बार फिर
एक बार फिर
एक बार फिर
सुबह हो रही है
किसी की उम्मीदों की
किसी के अरमानों की
किसी की नाराज़ मुहब्बत की
किसी की बैखौफ मुहब्बत की
किसी की बेनाम और
गुमनाम मुहब्बत की
और किसी की
बेइंतेहा मुहब्बत की
न जाने क्या क्या
दिल में लोग बसाये है
क्या क्या सपने है
जो रात ने अपने
दामन में सजाये है
फिर उदघोष हो रहा है
एक नए आयाम का
एक शरारत फिर
शुरू हो रही है
किसी के नाम पर
एक जयकारा फिर लगेगा
किसी के नाम पर
आज एक हौसला
फिर खड़ा है
अपने उसी मुक़ाम पर
जहाँ एक सुबह हो रही है
किसी की कामयाब मुहब्बत की।