एक और एक
एक और एक
एक मैं और एक तुम
हम जा रहे थे होने
शहनाई संग हो रहे थे
एक दूसरे में गुम
वो हल्दी वो मेहंदी
वो रस्मोरिवाज़
वो दिल का धड़कना
जैसे बज उठा कोई साज़
वो रिश्तों की भीड़
वो हँसी और ठिठोली
आँख मूँद तेरे संग मैं
सप्तपदी में होली
सिंदूर का वो दान
के बन गया तू मेरा मान
वो कहना पुरोहित का
के दो से एक हो गए
लगा था एक पल को
के मैं जड़ से अलग हो गयी
वो थामना हाँथ मेरा
हौले से तुम्हारा
कहना के हर रिश्ता
मिलके है हमारा
दोनो कुटुम्ब मिलके
अब एक हो जाएंगे
दोनों से जुड़े हर
फ़र्ज़ हम निभाएंगे
दिल को छू गया
अंदाज़ ये तुम्हारा
हो गए हैं मिल के हम
एक और एक ग्यारह।