एक और एक ग्यारह
एक और एक ग्यारह
जो कभी तन्हा थे दोनों
बरसो से एक दोस्ती को,
आज बरसो बाद अनजान से पहचान हुई
तो लगा एक और एक ग्यारह हो जायेंगे,
हम दोनों के अधूरे ख़्वाब अब पूरे हो जायेंगे।
जब शुरुआत हुई मिलने मिलाने वाली,
लोग थकते थे सोच के कि बचपने वाली दोस्त है;
रह जाते थे हैरान जब कल की पहली मुलाक़ात का
जिक्र किया दोनों ने।
हम साथ आते जाते और साथ ही खाते हैं,
जिगरी हैं दोस्त, कहने से कभी ना घबराते हैं।
घर वाले उसके, मेरे बारे में अच्छे से जानते हैं,
जो कभी कही गई मोहतरमा घूमने,
उसका कारण हमको ही मानते हैं।
आज एक दूसरे का हम सहारा हो गए थे,
कल शून्य थे और आज
एक और एक ग्यारह हो गए थे।