एहसास
एहसास
क्या देख रहे हो साब ?
जो मैने कहा क्या झूठ हैं साब।
मैने बस इतना कहा की कई किस्म के होते
हैं ये बलात्कार......
जब मुझे बुखार था,
और मां मुझे लेके परेशान थी,
तब जब पापा ने उसे अंदर
आने के लिये इशारे किये,
मुझे छोड़ के जब वो
भरी आँखो से अन्दर गयी,
तब मेरे लिये वो बलात्कार ही था।
जब पढ़ाने के बहाने टीचर ने
मुझे छूआ था,
और पुरा साल मार्क्स के डर से
बार बार छूता रहा,
तो वो भी तो एक बलात्कार ही था।
शादी का सर्टिफिकेट ले के
जो हर घर में होता हैं
वो क्या बलात्कार से कम होता हैं साब।
जब बलात्कारी को पुलिस ले के जाती हैं,
तब उसके मां के मन पर
भी बलात्कार करता हैं।
ये जो वो एहसास दिलाते हैं कि
तुम तुम नहीं हो, तुम मेरी हो।
मेरी नजर मे ये बलात्कार है।
उसके बजाय की तुम अकेली नही हो
मैं हूँ तुम्हारे साथ।
ये संभालना है।
हर वो खुदा का बंदा जो
स्त्री को अपनी जागीर समझाता हैं
, वो बलात्कार ही होता हैं साब,
हमारे आत्मसन्मान का।
हर पल हर क्षण नारी
मर रही है, घुट घूट के जी रही है।
हर बार साब जरूरी नहीं शरीर ही करे,
आँखो से, बोल के,या छु के भी
ये कमीने हम पे बलात्कार करते है
साब,
जब तक दुसरेकी छाती मे या
उसकी योनी मे उसे अपनी
मां बहन ना दिखाई दे
तब तक ऐसा ही चलता रहेगा...
और आप भी मानने लगेंगे की
बलात्कार कई तरीके से होते हैं।
क्या हूवा साब हसी बंद हो गयी आपकी,
नजर भी झुक गयी...
चलो कुछ को तो मैंने एहसास दिलाया,
की मन तो हममे भी है शरीर के साथ।
