दूर के फूल सुहाने
दूर के फूल सुहाने
हैं लगते सभी को दूर के फूल सुहाने,
दिखते अनगिनत दोष अपने देश में,
ओह! है कितना अस्वच्छ देश हमारा,
चहुं ओर दिखता ढ़ेर कचरे का।
कितना ढ़ेर किया एकत्रित आपने,
क्या गया ध्यान इस ओर आपका?
सजग हैं हम सभी अपने-अपने,
मौलिक अधिकार के प्रति,
क्या गया ध्यान कभी आपका,
मौलिक कर्तव्य की ओर?
ओह! है सोच कितनी संकीर्ण यहाँ,
है बँटवारा जाति, धर्म और
क्षेत्र के आधार पर।
वह है ब्राह्मण, बनिया, शूद्र,
हिन्दू, सिख, ईसाई,
वह है दक्षिण से, पूरब से,
उत्तर से, पश्चिम से।
क्या कभी दिया परिचय,
आपने कह भारतीय अपने को?
ओह! है मिलता वेतन कम यहाँ,
जायेंगे विदेश कमायेंगें ढ़ेर,
देंगे परिवार को ख़ुशियाँ ढ़ेर,
होगी गाड़ी बड़ी सी,
होगा घर अपना।
परन्तु धरती होगी पराई,
क्या यह सोचा आपने?
मिलती हैं ख़ुशियाँ ढ़ेर,
साथ हो जब अपनों का,
छू मन्तर हो जाते हैं दु:ख,
मिलकर खड़ा हो जब परिवार अपना।
है लगी होड़ आज जाने की विदेश,
न जाने कहाँ गुम गया जज़्बा देश प्रेम का,
लगता है आज सब अच्छा विदेश का,
माना है नहीं पूर्ण विकसित देश अपना,
बूँद बूँद ज्यों भरता घड़ा,
होगा विकास तभी,
होगा जब योगदान अपका भी थोड़ा-थोड़ा।
छोड़ देश अपना प्यारा,
छोड़ प्यार और सहयोग संपूर्ण,
परिवार का,
चले जाओगे देश दूसरे,
हो प्रवाहित देख चमक-धमक,
संकट के बादल लटकते रहेंगें सदा नौकरी पर,
रहोगे सदा विदेशी धरती पर किसी और की,
धरती पराई, लोग पराये, होगा सब पराया-पराया,
आये संकट कोई भी भेज दिये जाओगे वापिस,
धरती पर अपनी।
कहो करोगे फिर क्या?
बच के रहना होते हैं सदा,
दूर के फूल सुहाने।