STORYMIRROR

Neeraj pal

Abstract

4  

Neeraj pal

Abstract

दुआ।

दुआ।

1 min
327

सोचता हूँ मेरे प्रियतम, सच्चे प्रेम का कैसे इज़हार मैं करुँ।

निगाहों में तुम ऐसे समा जाओ, सिर्फ तुम्हारा ही यशगान करुँ।।


 प्रेम में इस कदर खो जाऊँ, हर किसी में तुमको ही निहारा मैं करुँ।

उठा ना सके कोई उंगली मुझ पर, जमाने की कुछ परवाह न करुँ।।


 जमाना चाहे कुछ भी कहे, सदा तुमको ही मैं पुकारा करुँ।

 मिलन का गम नहीं है जितना ,यादों में तुम को ही बसाया करुँ।।


 ध्यान ना रहे मुझको गैरों का, इस कदर मुहब्बत में समाया मैं करुँ।

मुहब्बत असल तो तुमने ही दिखलाई, कैसे मैं तुमसे बयां यह करुँ।। 


इतने तो तुम खुदगर्ज नहीं, किससे चाहत की तमन्ना मैं करुँ।

" नीरज" तो चाहता तुममें होना फ़ना, बस इतनी ही तुमसे दुआ मैं करुँ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract