दुआ...
दुआ...
न दुआ देते हो,न सजा देते हो.....
न दुआ देते हो,न सजा देते हो....
फिर भी हर बात पर....
रज़ा देते हो...
आपके लबो की नुमाईश,
चाँद की रोशनाई सी,
फिर जाने किस बात पर,
शर्त सितारों से लगा देते हो।
आप की आँखे है या मय के प्याले हैं
नज़र ही नज़र में पिला देते हो
न होश रहता है,
और न ख़बर ही कुछ रहती है,
एक मद्दहोश को और भी मज़ा देते हो
आपके गालों की सुर्ख रंगत,
और जाने क्या गुल खिलायेगी,
हमें तो बस एक झलक से
जला देते हो....
आपकी ज़ुल्फे बरहम,
किस किस की जान लेगी,
अपनी अदा से बिजली
तुम गिरा देते हो...
आप तो हर पल में
इत्मिनान से सोते हो,
जाने कितनो की नींदे
हरपल उडा देते हो....
अब और न शर्मिंदा
कीजिये आप हमें,
वैसे हर बात पर
अजनबी होने का एहसास
तुम करा देते हो....
कुछ मजबूरियां है दिल की,
अब जान सब गए,
किस-किस बात पर
तुम दिल को दुख देते हो...
हमें नहीं कोई शिकवा
न शिकायत है कोई,
फिर भी कुछ एहसास
तुम करा देते हो…….
अब सोने के लिए भी
रात भी कहाँ रही,
इसको भी तुम
अपने अंदाज़ से
जगा देते हो।
अब आपको ही
सज़दा करेंगे सब सितारे,
जब आसमां के चाँद को भी
तुम दीवाना बना देते हो।