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Nikhil Katyal

Tragedy

5.0  

Nikhil Katyal

Tragedy

दरवाज़े

दरवाज़े

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बड़ी नाउम्मीदी हुई,

जब घर के दरवाज़ों ने

मेरी उम्मीद छोड़ दी।


एक वो ही तो थे,

जो मुझे घर पहुँचने का

अहसास देते थे।


वो किवाड़ अब नहीं खुलते,

वो दरवाज़े

अब राह नहीं तकते।


इतनी दूर क्यूँ निकल आए हम,

कि अब वापिस जा नहीं सकते।।


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