Nikhil Katyal
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जिंदगी मेरा इम्तेहान लेना नहीं भूलती,
हर मोड़ पर सवाल खड़े मिलते हैं ।
लगे कि मुफीद हवाएं चलेंगी अब,
कमबख्त कुछ ही पत्ते हिलते डुलते हैं।
इम्तेहान
मयखाने के बाह...
हम अपना वतन य...
मेरी रुस्वाई
मकान तो बना ल...
मैं दुहाई देत...
मेरे हमसफ़र
दरवाज़े