लगे कि मुफीद हवाएं चलेंगी अब, कमबख्त कुछ ही पत्ते हिलते डुलते हैं। लगे कि मुफीद हवाएं चलेंगी अब, कमबख्त कुछ ही पत्ते हिलते डुलते हैं।
बुढ़ापे की सनक भी अजीब है, समझती ये खुद को मुफीद है , न किसी से कहना न किसी से सुनना, बुढ़ापे की सनक भी अजीब है, समझती ये खुद को मुफीद है , न किसी से कहना न किसी...