STORYMIRROR

Shilpi Goel

Abstract Classics Inspirational

4  

Shilpi Goel

Abstract Classics Inspirational

दर्पण

दर्पण

2 mins
525

कहते हैं दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता,,

मतलब, दर्पण सबको एक समान है तोलता।

शायद हाँ, क्योंकि,

मैंने देखा है एक औरत को दर्पण में झांक कर

मुस्कुराने की नाकाम कोशिश किए जा रही थी,

जो कुछ देर पहले अकेले में आँसू बहा रही थी,


मैंने देखा है एक औरत को जो दर्पण में झांक कर

चेहरे पर लगे चोट के दागों को श्रृंगार से छिपाने की नाकाम सी,

लेकिन भरसक कोशिश किए जा रही थी।

स्वयं को समझ कर कामयाब,

जैसे ही होकर पूर्णतः तैयार

मुड़ी वो औरत जाने को बाहर


साड़ी का किनारा अटक गया दर्पण में

और खुल गई सच्चाई स्वयं की नजरों में

तन के ढ़के हुए दाग जो उजागर कर दिए दर्पण ने

तभी गूंज उठी नन्हे दुधमुंहे बच्चे की किलकारी

जाने कहाँ से जाग उठी ना बुझने वाली चिंगारी


बाहर ना जाने का फैसला पति को जा सुनाया

सुनते ही पति ने गुस्से से अपना हाथ जो उठाया

अचानक से पत्नी ने वो हाथ काट खाया

पति समझ ना सका यह आत्मविश्वास पत्नी ने कैसे पाया

मैं माँ की गोद में आँचल तले लिपटा ही मंद-मंद मुस्काया


गुस्से से दर्पण पर गुलदस्ता जो फेंका

दर्पण टुकड़े-टुकड़े होकर जा बिखरा

तब समझ में मेरी आया,,

दर्पण आखिर काँच का होता है

टूटना उसकी किस्मत में होता है

टूट कर भी सच्चाई बयां करता है

टुकड़ों में जिंदगी जीने में क्या रखा है

इसलिए,,


फेंक दिया जाता है उसे एक नया दर्पण लाने को,

संभाल सको तो संभालो खुद को,

यूँ ही टुकड़ों में मत बिखर जाने दो।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract