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Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

4.9  

Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

"दर्पण झूठ नहीं कहता"

"दर्पण झूठ नहीं कहता"

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झूठी माया, झूठी काया,

झूठा है सब संसार,

झूठे बँधनों में बँधकर,

बन्दे, ईश्वर को नहीं पहचाना,

हंस तन के जब उड़ेगा,

कुछ भी साथ नहीं जाना,

ये सच्चाई है जग की,

कोई झूठ नहीं कहता,

मन के शीशे को निहारकर,

दर्पण झूठ नहीं कहता,


खाली हाथ आया जग में,

ईश्वर ने सब इंतज़ाम किया,

रिश्तें बनायें आते ही सारे,

धन - शौहरत से भी नवाज़ दिया,

भूला तू उसी को बन्दे,

जिस शिल्पकार ने तुझे आकार दिया,

मन शरीर का दर्पण हैं,

दर्पण झूठ नहीं कहता,


क्षण - भंगुर ये दुनिया सारी,

पल - भर का ये खेल है,

भाई - बंधु कुटुंब - कबीला,

दो - पल का मेल है,

कौन आया तेरे संग में,

कौन संग तेरे जायेगा,

उड़न - खटोला जब आयेगा,

अपने - आप को अकेला पायेगा,

"शकुन" तुझे ये बार - बार समझाये,

नादान प्राणी अब भी समझ ले,

मन शरीर का दर्पण हैं,

दर्पण झूठ नहीं कहता।


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