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Abhay kumar Singh

Romance

3  

Abhay kumar Singh

Romance

दरख्तों में देखा उसे,

दरख्तों में देखा उसे,

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दरख्तों में देखा उसे

हर तरफ़ अब याद आती है।


जब फोटो का फ्रेम सजाऊँ

उस फ्रेम में नज़र आती है,

वो तिरछी नजरें, कंगन, बाली,

वो लाली....दिल को छू जाती है,

दरख्तों में देखा उसे

हर तरफ़ अब याद आती है।


दिन की वो बातें.. पहली मुलाक़ातें

सपनों में याद आकर ,

जब भी मैं उस रास्ते से जाऊँ,

एसा लगा वो हमें तुतलाती है

दरख्तों में देखा उसे

हर तरफ़ अब याद आती है।


ये दिल मेरा इठलाता है

कर आजमाइश बढ़ जाता है।

मुसलसल उसी ओर मुड़ कर कहता है,

देख वो तुझे बुलाती है,

दरख्तों में देखा उसे

हर तरफ़ अब याद आती है।


ना समझ हूँ ना सहज हूँ

कुछ बात क्षितिज तक दिख जाती है

कितना भी रोकूं दिल को

कलम जज्बात को लिख जाती है

दरख्तों में देखा उसे

हर तरफ़ अब याद आती है।


स्याही रूक कर भी ...वो..नाम

लिखना बन्द ना करे

वाकिफ़ हूँ समझकर वो अपना काम करें,

दरअसल, बात कुछ एसी है

जान कर भी वो अन्जान समझ लेती है,

दरख्तों में देखा उसे

हर तरफ़ अब याद आती है।



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