दरख्त
दरख्त
ऐ इंसानों, जीना सीख लो
तुम इन दरख्तों से,
किसी की आशियाना है,
किसी का छाँव है ये,
बेज़ुबान परिंदो का आसरा है,
राहियों का छत भी, सीखा रहा
तुमको ये जीना लुटा के अपना सबकुछ..
ना लेकर कुछ भी अपना,
बहुत कुछ देता है तुमको,
आँधियों से लड़ता है,
फिर भी देखो खिलखिला रहा है,
सूरज से कुछ किरणें चुराकर,
देखो कैसे लहलहा रहा है,
ना कोई शिकवा ना कोई शिकायत,
देखो बारिश में नहा रहा है,
खुल के बहारों का मजा,
देखो ये कैसे उठा रहा है
सब कुछ लुटा के अपना
फिर भी ये मुस्कुरा रहा है।