दर्द
दर्द




हम अंधेरे का इस कदर शोक मनाते रहे,
कि सूरज कब आकर ढल गया,
पता ही नहीं चला।
फिर जब निकले धूप की तलाश में,
बस बरसते रहे घने बादल,
और हम यूँही भीगते रहे।
फिर सोचा कि तैर चलें दरिया के उस पार,
मगर आगे ना बढ़ पाए,
बस एक गहरे भँवर में फंसते रहे।
जब कोशिश की इस भँवर से निकलने की,
तब नज़र आई रोशनी उस सूरज की,
मगर अब थकी थकी सी ये ज़िन्दगी,
चाहती थी कुछ आराम,
तो हम बस उजाले को अब आँखों में भरकर,
सुकून से आखरी दम भरते रहे।