"दर्द मेरे जीवन के"
"दर्द मेरे जीवन के"
जीवन मानो किताबो के पन्नों में सिमट गया हो
घर से काम तक काम से घर तक
जैसे सिर्फ दो हिस्सों में बट गया हो
चेहरे पर एक नकली मुस्कान सा रहता है
दिल की अंदर से एक आवाज कहता है
क्या कर रहा है तू क्यों कर रहा है
किसके लिए इतना दर्द सहता है
कौन समझेगा इस दर्द को तेरे
सब व्यस्त है अपने आप में
फर्क नहीं पड़ता उन्हें तू जिए या मारे
थक चुका हूं मैं इस सूट बूट की नौकरी से
पर फिर भी घूंट घूंट कर जी रह
ा हूं आपनो के वस्ते
मतलबी हो गए हैं दोस्त सारे
मुंह फेर लेते हैं डरते हैं कुछ मांगना ले
आंख मिलते ही बदल देते हैं रास्ते।
समझ नहीं आता ये मेरी फूटी किस्मत है
या वक्त का मार
और कितना सहना पड़ेगा अपनों की बेवफाई और
किस्मत का दुर्व्यवहार
जीवन मानो किताबों के पन्नों में सिमट गया हो
घर से काम तक काम से घर तक
मानो जैसे दो हिस्सों में ही बट गया हो।