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Rahul Paswan

Abstract

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Rahul Paswan

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माँ

माँ

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जब से दुनिया को समझना सीखा है

मैंने मेरी माँ को हमेशा अपने साथ देखा

हर पल घर के कामों में व्यस्त रहती 

एक पल भी न रेस्ट लेती 

जब भी पड़ता था मैं बीमार

 बस माँ ही थी ,

 जो पूरी रात सोई नहीं 

 दोस्तों सच कहूं,

 माँ जैसी इस दुनिया में कोई नहीं 

 माँ जैसी इस दुनिया में कोई नहीं 

 

 9 महीने तक कोख में ढोती हमें

 कितने दर्द पीड़ा से गुजरती है

  फिर भी न की जाहिर।

 शायद माँ ही है जो अपने दर्द को छुपाने में 

 होती है माहिर,

   इसलिए तो उस दिन रसोई में जल गई थी

 मैं डर न जाऊं इसलिए एक आंसू तक रोई नहीं 

 सच बात है भाईयों 

माँ जैसी इस दुनिया में कोई नहीं 

 माँ जैसी इस दुनिया में कोई नहीं 

 

 मैंने देखा है बहुत से आशिकों को

 अपने आशिकी के खातिर माँ को छोड़ देते

  माँ के ममता के आगे तो भगवान भी झुकता है

  जिस प्यार के लिए छोड़ रहे हो माँ को,

 वह तो अब बाजारों में भी बिकता है

 जो माँ अपनी पुरी जिंदगी कुर्बान कर दी 

 घर को सजाने में 

 वो लक्ष्मी होती है कोई बोझ नहीं 

 इसलिए उन्हें प्यार दो 

 घर से कभी भगाना नहीं

 तुम जुल्म करते हो

 तुम जुल्म करते हो 

 यह जानते हुए भी माँ दुआयें देती है

  क्योंकि माँ तो माँ होती है कोई विद्रोही नहीं

 यार सच में माँ जैसी दुनिया में कोई नहीं

  माँ जैसी दुनिया में कोई नहीं 

                     

       


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