द्रौपदी का संताप - भाग १/४
द्रौपदी का संताप - भाग १/४
चक्रव्यूह के मध्य वो अकेला ही खड़ा था,
शूरवीर जो शत्रुओं से खूब लड़ा था,
वही था जो कौरवों की राह में अड़ा था,
शौर्य जिसका सारे वीरों के सर चढ़ा था।
पग जिसने रणभूमि में अंगद सा जड़ा था,
आज उसका पुत्र वो यूं गोद में पड़ा था,
हर अस्त्र जो पुत्र के शरीर में जितना गड़ा था,
मां के वक्ष पर घाव उसका उतना ही बड़ा था।
पांचाली कृष्णा थी वो, जो ज्वाला ने जनी थी,
काया उसकी विकट पुत्र शोक से अनमनी थी,
महाभारत है विधाता रचित, वो तो होनी थी,
फिर क्यों बनी मैं निमित्त, ये चाल घिनौनी थी।
पर द्रौपदी अब और मौन ना रहेगी,
चुपचाप सब कुछ अब वो ना सहेगी,
अश्रुधार चक्षुओं से अब यूं ना बहेगी,
संताप सारा अनवरत वो संसार से कहेगी।