दोस्त
दोस्त
चाहा था इक दोस्त ऐसा
खट्टी मीठी बातें करके
मन खाली कर ले हर दिन
न ऐब निकाले हर बात में
न पाबंदियों का अंकुश डालें
हर दिन मिलने की प्रतीक्षा में
हर रात गुजरे आसां बनके
मेरी बातों हो बेसिरपैर की
फिर भी रोचकता ले उसमें
न सोच अपनी लादे मुझ पर
न मेरी सोच को माने हर वक़्त
रोज़ सुनाये कुछ अटपटी बातें
मैं खिलखिलाती रहू तब तक
जब तक आँखों के कोर न भर आये
आँखों को ये अहसास हो जाये
ये खुशियाँ हीअश्रु बन कर के
मन को निर्मल कर देने वाली है।