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अमित प्रेमशंकर

Inspirational

5.0  

अमित प्रेमशंकर

Inspirational

दो रोटी घर को लाते हैं

दो रोटी घर को लाते हैं

1 min
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मेहनत कर मजदूरी कर दो रोटी घर को लाते हैं 

आपस में चारों भाई यूं बांट बांट कर खाते हैं।


ना चोरी ना बेईमानी ना हाथ कभी फैलाते हैं 

रूखी सूखी भोजन या फिर भूखे ही सो जाते हैं।


मंदिर मस्जिद काबा काशी गिरजाघर को जाते हैं 

आपस में मिल के रह ये पाठ पिताजी पढ़ाते हैं।


रोए कोई दीन दयाला खुद ही हम रो जाते हैं 

उसकी पीड़ा समझ के अपनी हल्दी तेल लगाते हैं।


छोटे मुंह से बड़ी बड़ी हम बात वही कह जाते हैं

अपने ही मेहनत के दम जीवन का कदम बढ़ाते हैं।


हम होंगे कामयाब एक दिन यह धैर्य है दिल में जगाते हैं

साहस और शौर्य से पर्वत में राह बनाते हैं।


मेहनत पर अपने गुरूर मुझे छाती पीट कर गुर्राते हैं

बड़े बड़े संकट भी घुटना टेक यहां थर्राते हैं।


कवि अमित प्रेमशंकर ✍️

एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड)




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