दो फूल
दो फूल
दो फूल खिल रहे हैं
आहिस्ते आहिस्ते,
सब देख तो रहे हैं
हँसते हँसते...
हवा की वो साथ हो
या मिलन की बेला,
भामारे चुम रहे
ये मिलन की खेला.
दो फूल खिल रहे है
आहिस्ते आहिस्ते.....
सुन्दरसी ये खेल
नहीं इसकी मेल,
चमन वो बांटते
देखेंगे यही पल.
दो फूल खिल रहे है
आहिस्ते आहिस्ते....
उनकी वो खुशबू
सब ले तो रहे है,
पर कोई रोकते
वो फैल तो रहा है.
दो फूल खिल रहे है
आहिस्ते आहिस्ते.....
रोको ना टोक ना तो
ये आनंद बेला है,
छुओं ना तोड़ो ना तो
खेलने मे खुशी है.
दो फूल खिल रहे है
आहिस्ते आहिस्ते.....
कली भी देख रहा
कुछ कहना भी है,
वो खिलेगा सोच के
चुपके हँसता है
दो फूल खिल रहे हैं
आहिस्ते आहिस्ते......
धुंद -
दो दिल मिल रहे है
चुपके चुपके ?

