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दो जवां दिल......

दो जवां दिल......

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उम्र कोई बंधन नहीं

किसी के लिए

आज भी तड़प उठते है

दो जवां दिल

एक - दूसरे के लिए..


यह तड़प उनका

मिज़ाज़ बन गई है

मौसिकी दर्द की

उनकी यह ज़ुदाई है

कुछ गहरे ख़ामोश

ख़ुश्क़ हुए आंसू

कुछ सीले हुए

लबों के शिकवे

कुछ ज़ुल्फ़ें बरहम

कुछ सिलवटें बिस्तर पर

यही वो अनमोल खज़ाने है

जिनकी यह नुमाईश है..

ज़माने के लिए..


उम्र कोई बंधन नहीं

किसी के लिए

आज भी तड़प उठते है

दो जवां दिल

एक - दूसरे के लिए..


यह सिलसिला यूँही

मुसलसल चलता रहा कब से

हम अबोध बने थे

अपनी बुर्ज़ुआपंती में

और बहक गए जाने

कब इस अंधांधुंधी में

वो सुर्खियों सा इश्तहार

बना उसका चेहरा

एक -एक हर्फ़ गढ़ता हुआ

मासूम वो चेहरा

जाने कब दिल में

घर कर गया

और यह दिल

जाने कब उन पर

मर गया

यह आज भी

एक राज़ है

दोनों के लिए...


उम्र कोई बंधन नहीं

किसी के लिए

आज भी तड़प उठते है

दो जवां दिल

एक - दूसरे के लिए...


वो बात जो

अब तक

हम कह न सके

वो बात जो

हमने सुन ली

बिना किसी के कहे

आज उस बात पर

बन रही है बातें

तन रही है नज़रें

गढ़ रही है

अफवाहें दबी सहमी सी

वो नज़र जो

उतर गई थी

दिल में

गुनेहगार बनी एक कोने में

छुपी सी है कहीं

यह क़सूर है

किसका

यह जुर्म है

किसका

क्यों यह दोनों

दिल सज़ा भुगत रहे है

किसकी खुशी दिल में

किसका दर्द दिल में

और किसका यकीन

दिल में

यूँ चुपचाप लिए...


उम्र कोई बंधन नहीं

किसी के लिए

आज भी तड़प उठते है

दो जवां दिल

एक - दूसरे के लिए..


















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