दियासलाई
दियासलाई
नहीं
अप्रत्याशित
नहीं होती कोई भी चर्चा
संवेगों के अंतिम प्रहर में,
क्या लिखूं
जो समझ आया था?
लिखूं क्या
जीवन में
स्वबोध के लिए
यह जी कैसे अकुलाया था।
अंतिम
उन उद्गारों में
भाव करवट कब ले लेगा,
यह भी तो हिय
समझ न पाया था।
देखती वर्तमान,
तेरी मधुर स्मृति को अंततः
पल में
कपूर होता पाया था।
संभवतः चर्चा में
समय एक दियासलाई
ले आया था।
