दिल से....
दिल से....
दिल से निकलते ही
मन तक चलते ही
सोच में आते हैं लब्स
फिर से लेखनेसे ही
शब्दो से भरजाते ही
देते भाबानायों की रस
दिल से निकलते ही...
मन तो मचलने ही
कुछ हो बिछड़ते ही
दर्द मे होते है उदास
दिल से निकलते ही....
लिख के कबिता मे ही
मन की उदासी को ही
घटाने की होती प्रयास
दिल से निकलते ही...
मन तो मिट जाते ही
दिल भी तुट जाते ही
खोने की होती है आभास
दिल से निकलते ही....
सब भी खोजाने से ही
एक तो रहेता है ही
कबिता की वो सारे रस
दिल से निकलते ही........
मिट के यादोमे ये ही
बस वो बसजाते ही
मन ना होता है बिबस
दिल से निकलते ही.....
धुंद -
घर से निकलते ही
कुछ दूर चलते ही
रास्ते मे है उसकी घर...