दिल से नमन है
दिल से नमन है
माँ के जैसा ही आदर्श और महत्वपूर्ण,
किरदार पिता का भी होता है।
बेहद ही संघर्ष से भरा जीवन,
पिता का भी तो होता है।
पिता परिवार रूपी रेलगाड़ी के,
शक्तिशाली इंजन स्वरूप होता है।
जो अपने माता-पिता और पत्नि रूपी,
दो पटरियों को हमेशा संग लेकर चलता है।
अपने बच्चों रूपी रेल के डिब्बों को,
अपने साथ लेकर दौड़ता रहता है।
जीवन रूपी सफर में खुद के,
दोस्तों और रिश्तेदारों को साथ लिए चलता है।
गर्मी, सर्दी, आंधी और तूफान,
हर मौसम में वो भागता रहता है।
बिना थके सुबह शाम वो हर पल,
खूब ही मेहनत करता है।
रात ही एकमात्र स्टेशन है,
जहाँ पर वो थोड़ी देर रुकता है।
सुबह होते ही वो फिर से,
अपने सफर पे निकल पड़ता है।
न सिर्फ दफ्तर की ज़िम्मेदारियों को,
बेहद ही बखूबी वो संभालता है।
परन्तु घर की ज़िम्मेदारियों को भी,
बड़ी ही कुशलता से निभाता है।
अपने परिवार के हर सदस्य का,
वो बेहद ही ध्यान रखता है।
किसी से कोई उम्मीद कीये बगैर ही,
वो अपना हर फर्ज़ निभाता है।
अपनी जवानी और अपनी खुशियाँ,
वो अपने परिवार पे लुटाता है।
हर एक रिश्ते को निभाने की कला,
वो ख़ूब ही अच्छे से जानता है।
अपना प्यार और ममता को,
वो अपने बच्चों पे लुटाता है।
ठोकर लगने पर हमेशा उनकी,
उंगली पकड़ के थाम लेता है।
बच्चों को पढ़ाता है लिखाता है,
और उनको हँसाता भी है।
उनके संग बच्चा बनकर खेलता है,
और नित नई कहानियाँ सुनाता है।
अपने बच्चों को आगे बढ़ने की,
राह पिता ही दिखाता है।
उनको जीवन में क़ाबिल बनाने हेतु,
अपना सबकुछ दाँव पे लगा देता है।
चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ,
वो हरदम सबके आगे मुस्कुराता है।
खुद सादगी में हमेशा रहके,
अपने परिवार को सबकुछ दिलाता है।
अपना दर्द कभी नहीं वो,
किसी को भी बताता है।
धैर्य, शांति और अपनी बुद्धि से,
अपनी गृहस्थी को चलाता है।
खुद तो ईमानदारी, सच्चाई और कर्तव्यनिष्ठा जैसे,
सदगुणों को अपने जीवन में अपनाता है।
अपने बच्चों को भी धैर्य, शाँति और संतोष के,
मार्ग पर चलने का पाठ वो पढ़ाता है।
पिता मेहनती, निडर और फौलाद की तरह,
बिल्कुल ही मज़बूत होता है।
जो हर मुश्किल घड़ी का सामना करने हेतु,
हमेशा ही जागरूक रहता है।
पिता के उपकार बहुत अनगिनत हैं,
जिनको चुकाना बिल्कुल ही नामुमकिन है।
ऐसे अनोखे, आदर्श और सर्वगुण सम्पन्न किरदार को,
मेरा सच्चे दिल से बेहद ही नमन है।
आज ऐसी महान प्रेरणादायी हस्ती के लिए,
मुझे सबसे इतना ही बस कहना है,
अपने पिता का दिल कभी भी किसी तरह से,
नहीं हमको कभी भी दुखाना है।
पिता के असंख्य उपकारों के बदले,
उन के जीवन को खुशियों से हमें भरना है।
उनका मान-सम्मान हमेशा ही,
हम सभी को बेहद ही करना है।
चाहे कितने भी मतभेद हों आपस में,
पर हमेशा उनको संग रखना है।
उन के जीते जी अपने कुछ पलों को,
बस उन के नाम करना है।
क्योंकि पिता से बढ़कर क़ीमती,
कोई और साया कभी नहीं होता है।
एक बार अगर वो खो जाए,
तो फिर कभी वापस नहीं मिलता है-2