दिल क्यों रोता है
दिल क्यों रोता है
हर बार मेरे साथ ही,
क्यों हर बार ये होता है ।
दिल छिटक कर जिस्म से,
कोने में बैठकर क्यों रोता है ।।
मैंने उसे चाहा बहुत,
पर उसका इरादा कुछ और होता है ।
मुझे एहसास के समंदर में उसके सिवा कोई प्यारा लगता नही,
पर तोड़ के वादों को मेरी आशिकी वो धोता है ।।
उसके हर दर्द को सीने से लगाया मैंने,
पर बेदर्दी,बेवफा वो मेरे जख्मों को ही कुरेदता है ।
उसके लिए खुद को पिघला दिया मैंने,
मेरे छप्पर जला के वो अपने महल में चुपचाप सोता है ।।
इशारे भर से ही उनके लिए हाजिर सब कर देता हूँ,
पर वो अपने नजरों में मुझको कम समझता है ।
चल जा फिर भी तुझे उम्रभर के लिए माफ़ किया,
पर वो मुझे आज भी गैर का गैर ही समझता है ।।
हर बार मेरे साथ ही,
क्यों हर बार ये होता है ।
दिल छिटक कर जिस्म से,
कोने में बैठकर क्यों रोता है ।।
